बुधवार, 4 अप्रैल 2012

SNEH AUR PYAR

मरुभूमि के मध्य धुप से बेहाल , पानी और प्यास की तीव्र जलन से झुब्ध अगर किसी राही को कोई श्रोत मिल जाये तो उसे लगता है जैसे मनो किसी ने वर्षा रुपी शबनम की फुहार छोड़ दी हो !
जीवन भर इन्सान का मन मृग के सामान भटकता रहता है , तलाशता रहता है , कोई तो हो जिस पर दिल का प्यार उड़ेल कर आत्मिक शांति मिले वरना शुन्य , अँधेरा , तन्हाई तो साथ देंगे ही !
उम्मीद और विश्वास के दायरे में प्यार की नीव डाली है ..., अब देखना ये है की क्या सपना हकीकत का रूप धारण करता है या फिर रेंत के बनाये महल की तरह एक लहर से जमींदोज हो जाता है !
ख्याबो का धरातल से दूर दूर तक वास्ता नहीं होता , किन्तु जीवन की डोर युही चलती रहती है ! हाँ ये अटल सत्य है की इन्सान अगर स्वप्न नहीं देखेगा तो उसके मन में लालसा कैसे पैदा होगी ,
अरमानो की डोली कैसे सजाएगा , विरह , प्रेम , वेदना की अभिवक्ति कैसे करेगा , प्यार को दिल में कैसे बसाएगा ! प्यार जो खुद एक साधना है , तपस्या है , उत्क्रिस्ट स्नेह ही प्यार है !

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