सोमवार, 23 अप्रैल 2012

TUTA TARA

हमीं गुमनाम अंधेरों में सिसकते रहे ,
तुम्हारे सामने आने से झिझकते रहे !
लो आज हम बेगाने भी बन बैठे ,
तुम ही सामने आने से हिचकते रहे !!

चलों गैरों ने ठुकराया था ,
आज तुमने भी तड़पाया  है !
कभी थे तुम्हारे  हम , ये सोच  कर ,
अश्क आँखों में झलक आया है !!

जब भी ढूंढा मैंने अपने को ,
सदा खुद ही को गुम पाया है !
छिटक कर आई है चांदनी कैसी , 
दिल में न जाने क्यों अँधेरा सा छाया है !!

वक़्त ने बदली है क्या सोच कर करवट ,
उसे हम पर फिर से प्यार आया है !
चमकता  चाँद है वो उन्मुक्त  गगन का ,
लगता है कोई टुटा तारा,  फिर नज़र आया  है !!

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

KUCH TO KAHO


जिसे चाहा हमने आपनी जां समज  कर 
उससे जुदाई  के ख्याल से भी आंख  भर आती है
इश्क , प्यार  और मोहब्बत का ऐ कैसा दौर है 
अब तो हमारी तन्हाई भी हमारा मजाक उड़ाती है 

शीशे में जो देखते है अपनी सूरत 
बस उसकी अक्स ऐ सूरत नज़र आती है
क्या करे , तू ही बता , ऐ खुदा
उसकी यादें दिल को तड़पा जाती है 

उसकी एक आवाज़ को तरश गए हम
उसका  न बोलना अब मेरे होश उड़ा ले जाती है
उसकी मोहब्बत में , काफ़िर हो गए हम 
अब तो हर शै में हमें उनकी सूरत  नज़र आती है 

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

SNEH AUR PYAR

मरुभूमि के मध्य धुप से बेहाल , पानी और प्यास की तीव्र जलन से झुब्ध अगर किसी राही को कोई श्रोत मिल जाये तो उसे लगता है जैसे मनो किसी ने वर्षा रुपी शबनम की फुहार छोड़ दी हो !
जीवन भर इन्सान का मन मृग के सामान भटकता रहता है , तलाशता रहता है , कोई तो हो जिस पर दिल का प्यार उड़ेल कर आत्मिक शांति मिले वरना शुन्य , अँधेरा , तन्हाई तो साथ देंगे ही !
उम्मीद और विश्वास के दायरे में प्यार की नीव डाली है ..., अब देखना ये है की क्या सपना हकीकत का रूप धारण करता है या फिर रेंत के बनाये महल की तरह एक लहर से जमींदोज हो जाता है !
ख्याबो का धरातल से दूर दूर तक वास्ता नहीं होता , किन्तु जीवन की डोर युही चलती रहती है ! हाँ ये अटल सत्य है की इन्सान अगर स्वप्न नहीं देखेगा तो उसके मन में लालसा कैसे पैदा होगी ,
अरमानो की डोली कैसे सजाएगा , विरह , प्रेम , वेदना की अभिवक्ति कैसे करेगा , प्यार को दिल में कैसे बसाएगा ! प्यार जो खुद एक साधना है , तपस्या है , उत्क्रिस्ट स्नेह ही प्यार है !

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

पहेली


ये कैसे रिश्ते है जिन्हें निभाना पड़ता है
दर्द दिल में होता है , गम छुपाना पड़ता है
युही  सरे राह मंजिल नहीं मिलती
नंगे पाँव काटों से भी गुजरना पड़ता है 


तराश कर बनाया  है रास्ता एक फूलों भरा
चल कर नव पथ बनाना पड़ता है
भटक न जाये , " जिंदगी " की  डगर से
खुद को रोज रोशनी दिखाना पड़ता है


है यकीं हमें  , " अपनी " वफाओ  पर 
वक़्त से बे वक़्त टकराना पड़ता है
है  लहर ,  बेख़ौफ़ लेकिन 
चिरागों का हमेशा रोशन करना पड़ता है


मिलता नहीं राह में अनमोल पत्थर फेका हुआ 
तराश कर उसे  मूरत बनाना पड़ता है