ahsas-ek sapna
हो गया कुछ इज़ाफ़ा मेरी भीअक्ल में
जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ
जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ
बेकरारी ने आँखों में निदियाँ आने न दी
कुछ इस कदर उनका आना जाना हुआ
कुछ इस कदर उनका आना जाना हुआ
अपने नाज़ो अदाओं से ग़ाफ़िल न थे वो
नजरें चुरा के जाना तो एक बहाना हुआ
नजरें चुरा के जाना तो एक बहाना हुआ
वक्त के साथ आशियाना बदल जाता है
उड़ते परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ ....Sanjay Rai
उड़ते परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ ....Sanjay Rai
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें